दिल्ली का चुनाव इस बार काफी अहम माना जा रहा है। यह चुनाव भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। भाजपा के लिए यह एक “कंटिन्यूटी टेस्ट” है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनकी परफॉर्मेंस थोड़ी कमजोर रही थी, लेकिन फिर उन्होंने महाराष्ट्र और हरियाणा में जीत हासिल कर ली। वहीं, आम आदमी पार्टी के लिए यह एक “क्रेडिबिलिटी टेस्ट” है, क्योंकि पार्टी के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं, और उसके कई शीर्ष नेता जेल भी जा चुके हैं, जो जेल में 6 महीने से लेकर 1.5 साल तक रह चुके है। हालांकि, मीडिया में यह माना जा रहा है कि दिल्ली में मुकाबला काफी कड़ा हो सकता है, लेकिन आम आदमी पार्टी को इस बार कुछ फायदे मिल सकते हैं। यह कुछ कारणों से संभव हो सकता है:
*केजरीवाल नहीं तो कौन?*
दिल्ली भारत का राजनीतिक केंद्र है। यहाँ संसद स्थित है, जहां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के फैसले होते हैं। यही वह जगह है जहाँ भारत की नीतियाँ बनती हैं और इतिहास रचता है। इसलिए दिल्ली में देश के कुछ सबसे ताकतवर नेता और राजनेता रहते हैं। पिछले एक दशक में, अरविंद केजरीवाल ने खुद को दिल्ली का सबसे बड़ा नेता, ‘बेटा’ और ‘भाई’ साबित किया है और भाजपा इस पर कोई जवाब नहीं दे पाई है। हालांकि वह 10 सालों से कोशिश करती रही है। भाजपा की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह प्रधानमंत्री मोदी पर ज्यादा निर्भर है, जिनकी राष्ट्रीय लोकप्रियता दिल्ली के मतदाताओं में ज्यादा असर नहीं डालती। इसके अलावा, भाजपा के पास कोई ऐसा सशक्त नेता नहीं है, जो दिल्ली में केजरीवाल को चुनौती दे सके। भाजपा की यही सबसे बड़ी कमजोरी लगातार बरकरार बनी हुई है।
*केजरीवाल की 4 नई गारंटी बनाम भाजपा की जीरो गारंटी*
भाजपा के लिए दूसरी बड़ी परेशानी केजरीवाल के बड़े पैमाने पर चल रहे जनसंपर्क कार्यक्रम हैं। जेल जाने के बाद, केजरीवाल और भी ज्यादा मजबूत, फोकस्ड और ऊर्जा से भरे हुए नजर आते हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी ये ऊर्जा पूरी ‘आप’ टीम में भी फैलाई है और अब पार्टी के सभी नेता तेज़ी से काम कर रहे हैं। उन्होंने (अधिकारिक तौर पर नहीं, लेकिन) अपने मुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान कर दिया है, अपने सभी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और 4 नई गारंटियों का भी ऐलान किया है। भाजपा को अब इन सभी चीज़ों का सामना करना पड़ रहा है और वह इन्हें लेकर सफाई देने में जुटी है कि वह आम आदमी पार्टी की चल रही योजनाओं को नहीं रोकेंगी, जिससे उनकी विश्वसनीयता को भी धक्का लग रहा है। दरअसल, यह वही भाजपा थी, जिसने पहले केजरीवाल की रेवड़ी राजनीति’ की आलोचना की थी।
*बॉक्स*
21 नवंबर: ‘आप’ ने उम्मीदवारों की सूची जारी की
10 दिसंबर: ऑटो चालकों के लिए 10 लाख रुपये का बीमा
12 दिसंबर: 2100 महिला सम्मान योजना
18 दिसंबर: संजीवनी योजना का शुभारंभ
04 जनवरी: बढ़े हुए पानी के बिल माफ करने की गारंटी
यहां तक कि कांग्रेस ने भी सत्ता में आने के बाद महिलाओं को 2500 रुपये प्रति माह देने का वादा करते हुए ‘प्यारी दीदी योजना’ का प्रस्ताव देकर आखिरी कोशिश की। लेकिन भाजपा कोई भी आधिकारिक ठोस वादा करने में विफल रही है। अब अगर भाजपा भी कुछ ऐसा ही ऐलान करती है, तो उसे केवल प्रतिक्रिया या नकल के तौर पर देखा जाएगा। नीतियों या वादों में इस तरह की असलियत की कमी भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा देती है।
*’शीश महल’ के अलावा भाजपा के पास कहने को कुछ नहीं*
भाजपा की एक और ‘कमजोरी’ यह है कि उसके पास दिल्ली के लिए कोई घोषणापत्र या विजन नहीं है। शायद यही कारण है कि भाजपा का पूरा नेतृत्व और उसकी मशीनरी केवल ‘शीश महल’ के बारे में बात कर रही है, जो टीवी चैनलों के लिए एक प्रिय विषय है, खासकर एक खास विजुअल फुटेज के कारण जिसका जमीनी स्तर पर कोई खास प्रभाव नहीं है। वास्तव में, राष्ट्रीय राजधानी में प्रधानमंत्री की पिछली दो सभाओं और गृह मंत्री के एक कार्यक्रम के बाद, मीडिया के बड़े हिस्से में चर्चा हो रही है कि अगर भाजपा अपने नैरेटिव से ‘शीश महल’ को हटा दे, तो उनके पास कहने के लिए शायद ही कुछ बचेगा।
*रोहिंग्या मुद्दे पर ‘आप’ का तीखा हमला*
भाजपा को एक और झटका यह लगा कि आम आदमी पार्टी ने रोहिंग्या और फर्जी वोटर घोटाले पर उसके बयान को ध्वस्त कर दिया। इस बयान ने वास्तव में पूरे ‘आप’ नेतृत्व को एकजुट होने का मंच दिया, जिससे उनका संकल्प और मजबूत हुआ। पहले जो संवाद बिखरा हुआ दिखता था, वह अब उनका मुख्य संदेश बन गया, और दिल्ली में रह रहे सभी पूर्वांचलियों तक पहुंच गया। वहीं, हरदीप सिंह पुरी का वीडियो स्पष्टीकरण न केवल देरी से आया, बल्कि कमजोर भी था। भाजपा माने या न माने, ‘आप’ के इस आक्रामक रुख ने उसे पूरी तरह से घेर लिया।
*गठबंधन की चर्चा से साफ, भाजपा की हालत कमजोर है*
सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी पूर्वांचली वोट हासिल करने के लिए जेडीयू, एलजेपी और आरएलडी के साथ गठबंधन की संभावनाएं तलाश रही है। हाल ही में जेडीयू द्वारा दिल्ली चुनावों में भाजपा के साथ मिलकर लड़ने की घोषणा यह दर्शाती है कि भाजपा को बाहरी समर्थन पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इससे यह भी साबित होता है कि भाजपा अकेले ‘आप’ को चुनौती देने में खुद को कमजोर मान रही है। जो पार्टी अक्सर खुद को आत्म निर्भर बताती आई है, इस तरह के गठबंधन की कोशिशें उन मतदाताओं के बीच उसकी छवि को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जो निर्णायक नेतृत्व की तलाश में हैं।
*भाजपा की महिला विरोधी मानसिकता उसपर उल्टा पड़ने की संभावना*
दिल्ली की आबादी शहरी है, जिसमें 40 वर्ष से कम आयु के 44.9 फीसद मतदाता हैं। इस आबादी को देखते हुए, भाजपा की गाली-गलौज की राजनीति एक महत्वपूर्ण और बड़ी वोटर समूह, खासकर महिलाओं को खुद से दूर कर दिया है, जो अब इस तरह के लैंगिक भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करतीं। आज का मतदाता समझदार, शिक्षित है और नफरती भाषण’ से हटकर ‘दिल्ली 2025 के रोडमैप’ पर ध्यान दे रहा है। खासकर दिल्ली की सीएम आतिशी के खिलाफ रामेश बिधूड़ी जैसे नेताओं की आपत्तिजनक टिप्पणियां व्यापक विरोध का कारण बन रही हैं। भाजपा का ऐसे नेताओं पर लगाम लगाने में विफल रहना, पार्टी की अनुशासन और लक्ष्य की कमी को सामने करता है। यह केवल केजरीवाल के उस रुख को सही ठहराता है, जिसमें उन्होंने लगातार कहा है कि भाजपा का इस चुनाव में एकमात्र उद्देश्य ‘गाली’ की राजनीति है और दिल्ली के लिए उनके पास कोई ठोस योजना नहीं है।